Monday 10 October 2011
लोग अलग -अलग कारणों से दोस्त बनाते हैं ----------
दोस्ती कई तरह की होती है -
१- सुख के साथी - आप तभी तक दोस्त है जब तक दोस्ती में ख़ुशी और मज़ा है । जैसे - एक अच्छे दिनों के दोस्त ।
२- सुविधा की दोस्ती - यह तब तक रहती है जब तक सुविधा रहती है । जैसे कि पड़ोसी से मिलना - जुलना , उठना - बैठना , लेन- देन । सुविधा ख़त्म हो गयी तो दोस्ती भी ख़त्म हो जाती है ।
३- उद्देश्य की दोस्ती - ऐसी दोस्ती मतलब की होती है । इसमें एक उद्देश्य छिपा रहता है । जैसे - पैसे वाला है ,पोज़ीसन वाला है , वाख्फियत वाला है , इसकी जरुरत पड़ सकती है , या बड़ा अफसर है आदि । इनसे बनाकर रखने का ख्याल दिमाग में रहता है ताकि कभी काम पड़ने पर ये काम आ सकें । मतलब ख़त्म तो दोस्ती भी ख़त्म ।
४- दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त - इतिहास गवाह है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त बन जाता है । यह दोस्ती तब तक बरक़रार रहती है जब तक दोनों का दुश्मन एक है । लेकिन जैसे ही वह बीच का दुश्मन चला जाये तो दोस्ती भी चली जाती है ।
५- सच्ची दोस्ती - यह एक दुसरे कि इज्जत और प्रशंसा पर आधारित होती है । सच्चे दोस्त वे लोग होते हैं जिनके मन में एक -दुसरे के लिए भलाई होती है और वे उसी के हिसाब से काम करते हैं । अच्छे कामों का बदला हमें अच्छे दोस्तों के रूप में मिलता है , ऐसे में दोनों तरफ से अच्छाई हमेशा बनी रहती है । इसका आधार चरित्र और कमिटमेंट होते हैं ।
खुशहाली में दोस्त बनते हैं लेकिन मुश्किलें उनके असली रूप को दिखाती या जाहिर करती हैं ।
Wednesday 21 September 2011
कई बार जीत से ज्यादा हार में विजय होती है
Monday 12 September 2011
नजरिया 2
दुनिया में दो तरह के लोग हैं - लेने वाले और देने वाले । लेने वाले खूब खाते हैं और देने वाले चैन की नींद सोते हैं , देने वालों में ऊँचे स्वाभिमान का भाव होता है । उनका नज़रिया अच्छा होता है , और वे समाज की सेवा करते हैं । समाज की सेवा करने वालों से मेरा मतलब उन तत्पुन्जियें नेताओं से नहीं है जो समाज सेवा की आड़ में अपना मतलब साधते हैं ।
इंसान होने के नाते हमें लेने और देने की जरुरत होती है । फिर भी ऊँचे स्वाभिमान से भरे अच्छे इंसान को सिर्फ लेने की ही नहीं , बल्कि देने की भी जरुरत होती है ।
" एक आदमी अपनी नयी कार की सफाई कर रहा था । जब उसके पडोसी ने पुछा कि , "यह कार तुम कब लाये ? " उसने जबाब दिया , " यह कार मेरे भाई ने मुझे दी है । " इस पर पडोसी ने कहा , " काश , मेरे पास भी ऐसी कार होती । " फिर उस कार वाले ने कहा , " तुम्हे यह खुवाहिस करनी चहिये कि काश मेरे पास भी ऐसा भाई होता । " पडोसी कि पत्नी उन दोनों कि बातचीत सुन रही थी , बीच में ही उसने कहा कि " काश , मैं ऐसा भाई होती । " कितने कमाल कि बात है । " नजरिया
Sunday 11 September 2011
नज़रिया
एक आदमी मेले में गुब्बारे बेचकर अपनी गुजर- बसर करता था । उसके पास लाल , पीले , नीले , हरे - चारों रंग के गुब्बारे थे । जब कभी उसकी बिक्री कम होने लगती , तब वह हीलियम गैस से भरा एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता । बच्चे उसे उड़ता देखकर , वैसा ही उड़ने वाला गुब्बारा पाने के लिए मचल उठते । बच्चे उससे गुब्बारा खरीदते और इस तरह उसकी बिक्री फिर से बढ़ जाती । दिन भर यही सिलसिला चलता रहता । एक दिन वह आदमी बाज़ार में खड़ा गुब्बारे बेच रहा था । अचानक उसे महसूस हुआ कि पीछे से उसका कोई कुरता पकड़कर खीच रहा है । उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक छोटे से बच्चे को खड़ा पाया । उस बच्चे ने गुब्बारे वाले से पूछा, "अगर आप काला गुब्बारा छोड़ेंगे तो क्या वह भी उड़ेगा ? " बच्चे की बात उसके दिल में लगी और उसने प्यार से जबाब दिया , " बेटे , गुब्बारा अपने रंग की वजह से नहीं उड़ता , बल्कि उसके अन्दर क्या है , इस वजह से ही वह ऊपर जाता है । "
ठीक यही बात हमारी जिंदगी पर भी लागू होती है । कीमती वह चीज है , जो हमारे अन्दर है । और वह चीज जो हमें ऊपर की ओर ले जाती है , वह हमारा नज़रिया है ।
Sunday 4 September 2011
छोटी -छोटी बातें बड़ा फ़र्क डालती हैं
हम कौन सा फ़र्क डाल रहे है ? बड़ा या छोटा , इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता । अगर सब लोग थोडा - थोडा फ़र्क लायें तो बहुत बड़ा फ़र्क पड़ेगा ।
Wednesday 17 August 2011
बढे चलो, बढे चलो
न हाथ एक अश्त्र हो
न अन्न वीर वस्त्र हो
हटो नहीं , डरो नहीं
बढे चलो , बढे चलो
रहे समक्ष हिम शिखर
तुम्हारा प्रण उठे निखर
भले ही जाये जन बिखर
रुको नहीं , झुको नहीं
बढे चलो, बढे चलो
घटा घिरी अटूट हो
अधर में कालकूट हो
वही सुधा का घूँट हो
जियो चलो , मरे चलो
बढे चलो , बढे चलो
गगन उगलता आग हो
छिड़ा मरण का राग हो
लहू का अपने फाग हो
अड़ो वहीँ ,गड़ो वहीँ
बढे चलो , बढे चलो
चलो नयी मिसाल हो
जलो नयी मशाल हो
बढ़ो नया कमाल हो
झुको नहीं , रुको नहीं
बढे चलो , बढे चलो
अशेष रक्त तोल दो
स्वतंत्रता का मोल दो
कड़ी युगों की खोल दो
डरो नहीं , मरो नहीं
बढे चलो , बढे चलो